कुंभ स्नान में नागा साधुओं के संस्कार


महापुरुष से अवधूत तक की यात्रा

कुंभ स्नान के दौरान नागा साधुओं के संस्कार विशेष महत्व रखते हैं। एक साधु जब महापुरुष की उपाधि प्राप्त कर लेता है, तब उसे अवधूत बनाए जाने की प्रक्रिया आरंभ होती है। अखाड़ों के आचार्य इस प्रक्रिया का संचालन करते हैं। सबसे पहले, महापुरुष बने साधु का विधि-विधान से जनेऊ संस्कार किया जाता है। इसके बाद, साधु को आजीवन संन्यासी जीवन जीने की शपथ दिलाई जाती है, जिससे वह सांसारिक मोह से पूर्णत मुक्त हो सके।

पिंडदान और दंडी संस्कार

साधु को सांसारिक मोह से पूरी तरह मुक्त करने के लिए उसके परिवार और स्वयं का पिंडदान करवाया जाता है। इस प्रक्रिया के पश्चात दंडी संस्कार होता है। दंडी संस्कार के बाद, साधु को पूरी रात ॐ नमः शिवाय का जाप करने के लिए कहा जाता है। इस जाप के माध्यम से साधु अपनी आत्मा को शुद्ध और सशक्त बनाता है।

विजया हवन और गंगा स्नान

रात भर चले इस जाप के पश्चात, भोर होते ही साधु को अखाड़े ले जाया जाता है, जहां उससे विजया हवन करवाया जाता है। इसके बाद साधु गंगा में 108 डुबकियां लगाता है। यह प्रक्रिया आध्यात्मिक शुद्धिकरण और ईश्वर के प्रति समर्पण का प्रतीक मानी जाती है। गंगा में डुबकी लगाने के बाद साधु अखाड़े के ध्वज के नीचे जाकर अपनी दंडी त्याग देता है, जो उसके त्याग और तपस्या का अंतिम चरण होता है।

निर्वस्त्र साधुओं का 12 साल का तप

नागा साधु आमतौर पर कुंभ मेले के अलावा सार्वजनिक रूप से कम ही दिखाई देते हैं। वे या तो अपने अखाड़े के भीतर रहते हैं या हिमालय की गुफाओं में जाकर कठोर तपस्या करते हैं। कुंभ के समाप्त होने के बाद वे अपने गुरु स्थान पर जाकर अगले कुंभ तक कठोर तप करते हैं। इस दौरान वे केवल फल-फूल खाकर जीवित रहते हैं और अपनी ऊर्जा को साधना में केंद्रित करते हैं। 12 वर्षों तक चली इस तपस्या के दौरान उनके बाल लंबे हो जाते हैं, जो उनकी तपस्या की गहराई को दर्शाता है।

अनोखा श्रृंगार और धार्मिक प्रतीक

नागा साधु अपने शरीर पर चिता की भस्म लपेटते हैं और माथे पर त्रिपुंड तिलक लगाते हैं। उनके श्रृंगार में त्रिशूल, शंख, तलवार और चिलम शामिल होते हैं। ये शैव पंथ के कट्टर अनुयायी होते हैं और अपने नियमों के प्रति अत्यधिक समर्पित होते हैं। उनके श्रृंगार में 17 विशिष्ट वस्तुएं होती हैं, जैसे कलंगोट, भभूत, चंदन, लोहे या चांदी का कड़ा, पंचकेश, कमर में फूलों की माला, माथे पर रोली का लेप, कुंडल, चिमटा, डमरू, गुथी हुई जटाएं, तिलक, काजल, और रुद्राक्ष की माला। इन वस्त्रों और आभूषणों से उनकी तपस्या, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, सन्यास और धर्म के प्रति निष्ठा झलकती है।

अशोभनीय व्यवहार से परहेज

नागा साधु शिव के उपासक होते हैं और उनकी भांति शांत रहते हैं। वे सदैव संयमित और धर्मपरायण जीवन जीते हैं। हालाँकि, जब धर्म या राष्ट्र पर संकट आता है, तो वे शिव के रौद्र रूप को अपनाने में भी संकोच नहीं करते। इतिहास गवाह है कि इन साधुओं ने धर्म और राष्ट्र की रक्षा के लिए अपने प्रचंड रूप का प्रदर्शन किया है। सामान्य परिस्थितियों में, वे शांत चित्त से केवल परमात्मा की प्राप्ति में लीन रहते हैं।

इस प्रकार, नागा साधुओं का जीवन, उनके संस्कार, तपस्या और त्याग उन्हें एक विशेष और पवित्र आध्यात्मिक स्वरूप प्रदान करते हैं।

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