अखाड़े और उनसे जुड़ी महत्वपूर्ण जानकारियां



अखाड़ों की स्थापना का श्रेय आदि शंकराचार्य को जाता है, जिन्होंने धर्म की रक्षा और संरक्षण के उद्देश्य से संन्यासियों का एक संगठित समूह बनाने की परंपरा शुरू की। आज भी ये अखाड़े भारत के सबसे बड़े मेले, कुंभ में सक्रिय रूप से भाग लेते हैं और शाही स्नान की रस्म अदायगी करते हैं।

प्रत्येक अखाड़े का नेतृत्व एक अध्यक्ष करता है, जिसे एक जटिल प्रक्रिया के तहत चुना जाता है। वर्तमान में कुल 13 प्रमुख अखाड़े हैं, लेकिन इस बार के कुंभ में 14 अखाड़े हिस्सा लेंगे।

इनमें से 7 शैव, 3 वैष्णव, और 3 उदासीन (सिख) अखाड़े शामिल हैं। खास बात यह है कि इस बार पहली बार किन्नर अखाड़ा भी शामिल होगा।

शैव संप्रदाय के 7 प्रमुख अखाड़े:

  1. श्री पंचायती अखाड़ा महानिर्वाणी – दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
  2. श्री पंच अटल अखाड़ा – चैक हनुमान, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  3. श्री पंचायती अखाड़ा निरंजनी – दारागंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
  4. श्री तपोनिधि आनंद अखाड़ा पंचायती – त्रयंबकेश्वर, नासिक (महाराष्ट्र)
  5. श्री पंचदशनाम जूना अखाड़ा – बाबा हनुमान घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  6. श्री पंचदशनाम आवाहन अखाड़ा – दशाश्वमेघ घाट, वाराणसी (उत्तर प्रदेश)
  7. श्री पंचदशनाम पांच अग्नि अखाड़ा – गिरिनगर भवनाथ, जूनागढ़ (गुजरात)

वैष्णव संप्रदाय के 3 प्रमुख अखाड़े:

  1. श्री दिगंबर अणि अखाड़ा – शामलाजी खाकचौक मंदिर, सांभर कांथा (गुजरात)
  2. श्री निर्वाणी अणि अखाड़ा – हनुमान गादी, अयोध्या (उत्तर प्रदेश)
  3. श्री पंच निमोर्ही अणि अखाड़ा – धीर समीर मंदिर, वृंदावन, मथुरा (उत्तर प्रदेश)

उदासीन संप्रदाय के 3 प्रमुख अखाड़े:

  1. श्री पंचायती बड़ा उदासीन अखाड़ा – कृष्ण नगर, कीटगंज, प्रयाग (उत्तर प्रदेश)
  2. श्री पंचायती अखाड़ा नया उदासीन – कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)
  3. श्री निर्मल पंचायती अखाड़ा – कनखल, हरिद्वार (उत्तराखंड)

इस प्रकार, ये अखाड़े भारतीय धार्मिक और सांस्कृतिक विरासत के महत्वपूर्ण स्तंभ हैं, जो परंपराओं को जीवित रखते हुए सामाजिक और धार्मिक संतुलन बनाए रखते हैं। लेकिन इस बार के कुंभ में हमें 14 अखाड़े देखने मिलेंगे, जिनमे किन्नर अखाडा इस कुंभ से जोड़ा गया गए।


13 प्रमुख अखाड़ों की महत्वपूर्ण जानकारी

महानिर्वाणी अखाड़ा (शैव): महानिर्वाणी अखाड़े के प्रमुख केंद्र हिमाचल प्रदेश में हैं, जबकि इसकी शाखाएं प्रयाग, ओंकारेश्वर, काशी, त्र्यंबकेश्वर, कुरुक्षेत्र, उज्जैन, और उदयपुर में स्थित हैं। इस अखाड़े के महंत विशेष रूप से उज्जैन के महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग में भस्म अर्पित करते हैं।

अटल अखाड़ा (शैव): भगवान श्री गणेश को इष्ट देव मानने वाले अटल अखाड़े का केंद्र काशी में है, और इसकी शाखाएं बड़ौदा, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर, उज्जैन आदि स्थानों पर स्थित हैं। इनका शस्त्र ‘सूर्य प्रकाश’ नामक भाला है, और यहां केवल ब्राह्मण, क्षत्रिय, और वैश्य समुदाय के लोग दीक्षा ले सकते हैं।

आवाहन अखाड़ा (शैव): 1547 में स्थापित आवाहन अखाड़े का केंद्र काशी के दशाश्वमेघ घाट में है। यह जूना अखाड़े से संबंधित है और भगवान श्री गणेश व दत्तात्रेय को इष्ट देव मानता है। इसकी एक शाखा हरिद्वार में भी है।

जूना अखाड़ा (शैव): कुंभ मेले में अपनी महत्वपूर्ण उपस्थिति दर्ज कराने वाला जूना अखाड़ा, जिसे पहले भैरव अखाड़ा कहा जाता था, अब भगवान दत्तात्रेय को इष्ट देव मानता है। यह अखाड़ा कुंभ के सबसे पुराने अखाड़ों में से एक है।

निरंजनी अखाड़ा (शैव): 826 में स्थापित निरंजनी अखाड़ा भगवान कार्तिकेय को इष्ट देव मानता है। इसकी शाखाएं इलाहाबाद, उज्जैन, हरिद्वार, त्र्यंबकेश्वर और उदयपुर में स्थित हैं। इस अखाड़े में कई स्तर के अधिकारी होते हैं, जिनमें दिगंबर, साधु, महंत, और महामंडलेश्वर शामिल हैं।

निर्मोही अखाड़ा (वैष्णव): 18वीं सदी में गोविंददास द्वारा स्थापित निर्मोही अखाड़ा, अयोध्या में स्थित है और मोह-माया से मुक्त साधुओं का समूह है।

निर्वाणी अखाड़ा (वैष्णव): अयोध्या का निर्वाणी अखाड़ा हनुमानगढ़ी पर अधिकार रखता है और इसके चार विभाग हैं—हरद्वारी, वसंतिया, उज्जैनिया, और सागरिया।

निर्मल अखाड़ा (सिख): सिख गुरु गोविंद सिंह के सहयोगी वीरसिंह द्वारा स्थापित निर्मल अखाड़ा के साधु सफेद वस्त्र पहनते हैं और इनके ध्वज का रंग पीला होता है। इनका उद्देश्य गुरु नानकदेव जी के सिद्धांतों का पालन करना है।

आनंद अखाड़ा (शैव): सूर्य को इष्ट देव मानने वाला आनंद अखाड़ा मुख्य रूप से काशी में सक्रिय है। हालांकि इसकी परंपराएं अब लुप्तप्राय हो चुकी हैं।

अग्नि अखाड़ा (शैव): 1957 में स्थापित अग्नि अखाड़े का केंद्र गिरनार की पहाड़ी पर है। इसके साधु तीन वर्गों में विभाजित होते हैं—नर्मदा-खंडी, उत्तरा-खंडी, और नैस्टिक ब्रह्मचारी।

दिगंबर अखाड़ा (वैष्णव): 260 साल पुराने इस अखाड़े की स्थापना मध्यमुरारी ने रामनगरी अयोध्या में की थी। यह अखाड़ा दो भागों में विभाजित है—श्याम दिगंबर और राम दिगंबर।

बड़ा उदासीन अखाड़ा (सिख): 1910 में स्थापित इस अखाड़े के संस्थापक श्रीचंद्राचार्य उदासीन थे। इसका मुख्य उद्देश्य सेवा करना है और इसका केंद्र इलाहाबाद में है।

नया उदासीन अखाड़ा (सिख): 1902 में मतभेदों के कारण उदासीन साधुओं ने नया उदासीन अखाड़ा स्थापित किया। इसकी शुरुआत 1710 में हुई थी।

किन्नर अखाड़ा: हाल ही में मान्यता प्राप्त 14वां किन्नर अखाड़ा भी कुंभ मेले का हिस्सा बन चुका है। इसकी महामंडलेश्वर लक्ष्मीनारायण त्रिपाठी हैं, और इसमें लगभग 2500 साधु शामिल होने की उम्मीद है।

|

|

,

|


Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.