स्वतंत्रता का क्षरण: “वॉक कल्चर” और आधुनिक बुराइयाँ कैसे भारत के युवाओं और समाज को खतरे में डाल रही हैं


स्वतंत्रता का क्षरण: “वॉक कल्चर” और आधुनिक बुराइयाँ कैसे भारत के युवाओं और समाज को खतरे में डाल रही हैं

भारत, जो कभी शील, समुदाय और मजबूती के मूल्यों के लिए जाना जाता था, आज आज़ादी के आभासी वेस्टर्न प्रवाह के कारण एक निर्णायक क्षण में खड़ा है। “स्वतंत्रता” का जो मतलब वह 21वीं सदी में बदल गया है और इसे अक्सर युवाओं की आज़ादी और आधुनिकता के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। लेकिन इस प्रगति की चमक के पीछे एक परेशान करने वाली सच्चाई छिपी है – “वॉक कल्चर” का बढ़ता चलन। एक ऐसा शब्द जो बेपरवाह और भोगवादी जीवनशैली को दर्शाता है और यह उपभोक्तावाद, डिजिटल प्रभाव और अनियंत्रित बुराइयों से प्रेरित है। क्या यह युवाओं की स्वाभाविक पसंद है, या बाज़ार की ताकतों द्वारा सोची-समझी थोपी जा रही साजिश? तो फिर उस समाज का क्या? जो कभी अश्लीलता के नाम से शर्मिंदा हो जाता था और अब शोषणकारी उद्योगों और नैतिक पतन से जूझ रहा है?

यह लेख आधुनिक भारत के सांस्कृतिक बदलाव की गहराई में जाता है और नशे, मानव तस्करी, मनोरंजन के नाम पर अश्लील उद्योग और सामाजिक मूल्यों के ह्रास पर प्रकाश डालता है। शोध, आँकड़ों और गंभीर विश्लेषण के साथ, हम यह समझने की कोशिश करते हैं कि ये ताकतें न सिर्फ भारत के युवाओं, बल्कि इसकी सभ्यता के आधार को कैसे खतरे में डाल रही हैं।

आज़ादी या छलावा? : “वॉक कल्चर” का उभार

“वॉक कल्चर” एक ऐसी जीवनशैली का प्रतीक है जिसमें स्वतंत्रता को अनियंत्रित भोग के साथ जोड़ा जाता है। जिसमे वास्तविक आज़ादी का कोई अस्तित्व ही नहीं है। क्योंकि यह वॉक कल्चर देर रात की पार्टियाँ, आकस्मिक रिश्ते और पारंपरिक नियमों का त्याग करने को बढ़ावा देता है। कुछ लोग इसे युवाओं की स्वाभाविक बगावत मानते हैं, लेकिन गहराई से देखें तो इसके पीछे एक गहरी साजिश नज़र आती है: व्यावसायीकरण। संस्कृति का पतन और मानसिक पतन का आरंभ जो भारत की आत्मा और अस्तित्व को धीमी गति से ख़त्म क्र देगा।

वैश्विक मनोरंजन और जीवनशैली से जुड़े उद्योग भी लंबे समय से भोगवादी जीवन को बढ़ावा देकर मुनाफा कमाते रहे हैं। भारत में यह कैफे, नाइटलाइफ़ और डिजिटल सामग्री के ज़रिए दिखता है जो आज़ादी के नाम पर विकृतता की अति को महिमामंडित करती है। स्टेटिस्टा की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, भारत का कैफे बाज़ार 2027 तक 2.3 अरब डॉलर तक पहुँचने की उम्मीद है, जो शहरी युवाओं की “इंस्टाग्राम योग्य” अनुभवों की चाहत से बढ़ रहा है। यह कोई संयोग नहीं, बल्कि कंपनियों की सोची-समझी रणनीति है जो पहचान और जुड़ाव की तलाश में युवाओं को निशाना बनाती है। हम कर नहीं रहे, दिखावे की दुनिया हमशे करवा रही है, यह होता हे आपके ही कल्चर को बेड़ियां बताकर आपको उस कल्चर में जोंक देना जिसका न कोई भविष्य है न वास्तविक अस्तित्व।

लेकिन इसके परिणाम जो आप की द्रष्टि में सिर्फ एक कॉफी के कप ही तो है, इससे से कहीं आधिक आगे तक ले जाता हैं। “स्वतंत्रता” को भोग के रूप में सामान्य बनाने से उन बुराइयों के दरवाज़े खुल गए हैं, जो कमज़ोरियों का शोषण करती हैं। आपके मन में एक सवाल आ रहा होगा की – क्या यह सिर्फ युवाओं की पसंद है, या इसे फैलाने के लिए बाज़ार तैयार किया जा रहा है?”  जवाब मुनाफे और ताकत के मिलन में छिपा है। जैसे चिकित्सा माफिया बीमारी पैदा करके कमाता है (“जैविक युद्ध” /Biological Warfare का एक सटीक रूपक), वैसे ही उद्योग इच्छाएँ पैदा करके मुनाफा कमाते हैं। फिर चाहे वह नशा हो, सेक्स हो या अन्य से आगे भागने की चाहत।

इस आज़ादी का शिकार सबसे अधिक कौन बन रहा है? महिलाएं? क्या वे वास्तव में खुश है? या उनकी ख़ुशी कम समय की है और आभासी सपने है? युवा इस प्रवाह में बह रहा है, जिसके पीछे का कारण एक मात्र है ट्रेंड को फोलो करना। लेकिन, क्या हमने सोचा है की ट्रेंड को कैसे बनाया जाता है? जवाब है निर्धारित तरीके से पैसा खर्च कर के? जिबली इसका ताजा उदाहरण है, आप अगर इसमें नहीं है तो आपको फिल होगा मानो आप किसी रेस में पीछे रह गए, लेकिन वास्तव में इसका कोई लोजिक नही बनता। उल्टा आप एक वास्तविकता भूल जाते है की इंटरनेट पर जाने वाली कोई भी वास्तु किसी भी स्थिति में और कभी भी पूरी तरह से हटाया जाना या रोका जाना असंभव होता है। दूसरी और यही डेटा एआइ ट्रेन करने में इस्तेमाल होता है, मतलब आंशिक रूप से आपकी जानकारी को कुछ कुछ हिस्सों में कही न कही इस्तेमाल आवश्य किया जायेगा, फिर चाहे वह आपके हित में हो या अहित में।

इंटरनेट की संरचना विकेंद्रीकृत (Decentralized) है, जो इसे एक ऐसी तकनीक बनाती है जहां डेटा कई सर्वरों, नोड्स और कैश सिस्टम में फैला होता है। जब कोई सामग्री (जैसे “जिबली” का उदाहरण) इंटरनेट पर अपलोड होती है, तो वह तुरंत कई जगह कॉपी हो सकती है—वेबसाइट्स, सोशल मीडिया, क्लाउड स्टोरेज, या यहाँ तक कि व्यक्तिगत डिवाइसेज़ पर। इसे तकनीकी रूप से “डेटा रेप्लिकेशन” (Data Replication) कहते हैं, जो इंटरनेट की गति और उपलब्धता को बढ़ाता है। लेकिन यही विशेषता सामग्री को हटाने को असंभव बनाती है। उदाहरण के लिए, यदि कोई वीडियो वायरल हो जाता है, तो वह मूल स्रोत से हटने के बाद भी अन्य प्लेटफॉर्म्स या पीयर-टू-पीयर नेटवर्क्स (जैसे टॉरेंट) पर मौजूद रह सकता है।

इसके अलावा, “डिजिटल फुटप्रिंट” और “वेब आर्काइविंग” तकनीकें, जैसे Wayback Machine (archive.org), इंटरनेट पर मौजूद सामग्री का ऐतिहासिक रिकॉर्ड रखती हैं। एक बार कुछ ऑनलाइन हो जाए, तो उसे पूरी तरह मिटाना इसलिए असंभव है क्योंकि डेटा का कोई न कोई निशान हमेशा रह जाता है। यहाँ तक कि ब्लॉकचेन जैसी आधुनिक तकनीकें, जो डेटा को अपरिवर्तनीय बनाती हैं, इस समस्या को और जटिल करती हैं।

ताजा उदाहरण: 2023 में, “कुल्हड़ पिज्जा” कपल का निजी वीडियो लीक होने के बाद, भारतीय हाई कोर्ट ने इसे इंटरनेट से हटाने का आदेश दिया। लेकिन तकनीकी सीमाओं के कारण, यह विभिन्न अनौपचारिक साइट्स और चैट ग्रुप्स में फैलता रहा। यह दिखाता है कि इंटरनेट की संरचना ही इसे रोकने में सबसे बड़ी बाधा है।

सोर्स: इस तर्क का आधार इंटरनेट की तकनीकी संरचना और वेब आर्काइविंग पर सामान्य ज्ञान से लिया गया है, साथ ही “Rakhi Sawant High Court ordered to remove private videos” (jansatta.com, 25 मार्च 2023) जैसे वास्तविक मामलों से प्रेरणा ली गई है। – (Grok द्वारा दिया गया तर्क – इंटरनेट पर जानकारी के संदर्भ में है)

भारत के भविष्य मंडराता विनाश: नशे का ट्रेंड

इस सांस्कृतिक बदलाव का सबसे खतरनाक परिणाम है, भारत में नशे का बढ़ता चलन। भारत जो कभी नशीले पदार्थों का रास्ता मात्र था, अब इनका बड़ा उपभोक्ता बनता चला जा रहा है। संयुक्त राष्ट्र के ड्रग्स और अपराध कार्यालय (UNODC) की 2022 की विश्व ड्रग रिपोर्ट के अनुसार, भारत में 2010 से 2020 के बीच भांग का उपयोग 30% और ओपियोइड की खपत 70% बढ़ी है। सिंथेटिक ड्रग्स जैसे मेथमफेटामाइन शहरी इलाकों में घुस रहे हैं और पिछले पाँच सालों में इनकी बरामदगी दोगुनी हो गई है।

भारत में देखा जाये तप युवा इसका मुख्य शिकार हैं। सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के 2021 के अध्ययन में पाया गया कि भारत की 10-75 साल की 13.1% आबादी यानि की लगभग 15 करोड़ लोग नशे में लिप्त हैं, जिसमें शराब, भांग और ओपियोइड सबसे ऊपर हैं। कॉलेज छात्रों में 5 में से 1 ने दोस्तों के दबाव या “स्वतंत्रता” के आकर्षण में नशे की कोशिश की। फिल्मो में दिखाया जाना, इसको ग्लोरिफाय करना, सोशल मिडिया इन्फ्लुएंसर की जीवन शैली वगेरह युवा को इस और बढ़ने को आकर्षित करते है।

अगर यह सिर्फ टीवी चेनल तक या सिनेमा तक रहेता तो यह अधिक न फैलता लेकिन इस सदी के प्रारंभ से ही इंटरनेट इस संकट को और गंभीर बना रहा है। डार्क वेब और टेलीग्राम जैसे कुछ नए दौर में विकसित ऐप्स ने नशे को कुछ क्लिक की दूरी पर ला कर खड़ा कर दिया है। द टाइम्स ऑफ इंडिया की 2023 की जाँच में पता चला कि अकेले मुंबई में 200 से ज़्यादा ड्रग तस्कर सोशल मीडिया के ज़रिए छात्रों और युवा पेशेवरों को निशाना बना रहे हैं। यह सिर्फ व्यक्तिगत कमज़ोरी नहीं, बल्कि भारत के भविष्य पर व्यवस्थित हमला है, जिससे सालाना 15 अरब डॉलर का आर्थिक नुकसान हो रहा है (नीति आयोग, 2022)।

आधुनिक तकनीक, विशेष रूप से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स और डिजिटल मार्केटिंग, नशे को ग्लोरिफाई करने और इसे जीवनशैली में “आज़ादी” के पर्याय के रूप में स्थापित करने का एक शक्तिशाली माध्यम बन गए हैं। एल्गोरिदम-चालित कंटेंट डिलीवरी सिस्टम (जैसे TikTok, Instagram Reels) यूज़र्स की पसंद को ट्रैक करते हैं और उन्हें वैयक्तिकृत (Personalized) कंटेंट दिखाते हैं। जब कोई युवा नशे से जुड़े ग्लैमरस वीडियो (जैसे पार्टियों, ड्रग-प्रेरित संगीत, या “हाई लाइफ” दिखाने वाली पोस्ट्स) देखता है, तो मशीन लर्निंग एल्गोरिदम इसे “पसंद” के रूप में रजिस्टर करते हैं और आगे ऐसा ही कंटेंट बढ़ावा देते हैं। यह एक “फीडबैक लूप” बनाता है, जो नशे को सामान्य और आकर्षक बनाता है।

इसके साथ ही, व्यावसायिक गुट (जैसे तंबाकू, शराब, या कैनबिस इंडस्ट्री) डिजिटल विज्ञापन और इन्फ्लुएंसर मार्केटिंग का उपयोग करते हैं। वे नशे को “कूल” और “स्वतंत्रता” का प्रतीक बनाकर पेश करते हैं। उदाहरण के लिए, टारगेटेड विज्ञापन (Targeted Ads) तकनीक के ज़रिए, ये कंपनियाँ युवाओं की उम्र, रुचियों और ऑनलाइन व्यवहार को डेटा एनालिटिक्स से समझकर उन्हें सीधे प्रभावित करती हैं। डीपफेक और AI-जनरेटेड कंटेंट भी अब नशे को बढ़ावा देने वाले विज्ञापनों में इस्तेमाल होने लगे हैं, जो वास्तविकता और कल्पना की सीमा को धुंधला करते हैं।

इसका परिणाम यह होता है कि युवाओं के दिमाग में नशा एक विकृति के बजाय “लाइफस्टाइल चॉइस” बन जाता है। न्यूरोसाइंस के अनुसार, लगातार ऐसे कंटेंट के संपर्क में रहने से डोपामाइन रिलीज़ होता है, जो नशे की लत को और बढ़ाता है। देश के लिए यह आर्थिक नुकसान (स्वास्थ्य सेवाओं पर बोझ, उत्पादकता में कमी) और सामाजिक बर्बादी (अपराध, पारिवारिक टूटन) के रूप में सामने आता है।

ताजा उदाहरण: 2022 में, अमेरिका में “वैपिंग” (E-cigarette) के चलन को बढ़ावा देने के लिए Juul Labs पर मुकदमा चला, जिसमें आरोप था कि कंपनी ने सोशल मीडिया पर टारगेटेड विज्ञापनों और इन्फ्लुएंसर्स के ज़रिए किशोरों को निशाना बनाया। FTC (Federal Trade Commission) की रिपोर्ट के अनुसार, Juul ने डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल कर युवाओं को “स्वतंत्र और ट्रेंडी” जीवनशैली से जोड़ा, जिससे वैपिंग की लत में भारी वृद्धि हुई।

सोर्स:  “Juul Labs Targeted Teens with Ads, Lawsuit Claims” (The New York Times, 31 जुलाई 2022) | FTC रिपोर्ट: “E-Cigarette Marketing and Youth” (ftc.gov, 2022)

मानव तस्करी: शोषण की काली छाया

नशे के कारोबार से जुड़ा एक और डरावना पहलू है मानव तस्करी, जिसे हम एक वॉक कल्चर के परिणाम स्वरूप फलती फूलती अत्यंत गंभीर समस्या के रूप में देखा जा सकता है। भारत मानव तस्करी का स्रोत, रास्ता और मंज़िल तीनों ही बनता जा रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) के अनुसार, 2022 में 6,533 मामले दर्ज हुए, जो पिछले साल से 25% ज़्यादा हैं। फिर भी, विशेषज्ञ मानते हैं कि असल संख्या इससे दस गुना हो सकती है, क्योंकि ज़्यादातर मामले सामने नहीं आते। परिणाम होता है बड़े लोगो का प्रभाव और सत्ता का दुरूपयोग या उनका सरकारी तंत्रों में इन्फ्लुएंश।

“वॉक कल्चर” नाइटलाइफ़, नशे, सॉफ्ट कोर्नर जिस्मफरोसी और आकस्मिक रिश्तों (जो वासना और विकृति का परिणाम है) को बढ़ावा देता है, यही वह अवसर बनता है जो तस्करों के लिए मुँह माँगा मौका खड़ा कर देता है। नौकरी या ग्लैमर के वादे से लुभाए गए युवक-युवतियाँ अक्सर वेश्यालयों या जबरन मज़दूरी में फँस जाते हैं। एनजीओ सेव द चिल्ड्रन की 2023 की रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में 60% तस्करी पीड़ित 25 साल से कम उम्र के हैं, जिनमें से कई सोशल मीडिया घोटालों या नकली मॉडलिंग ऑफर के जाल में फँसे। आजकल यही से भारतीय सॉफ्ट पोर्न का प्रारंभ हुआ जो अब फुल टाइम पोर्नोग्राफ़ी में परिवर्तित हो चूका है। अब आप सोच रहे हे इससे हमें क्या? लेकिन इन्ही शो की क्लिप सोशल मिडिया तक भी आती है जिसको आपके २-५ साल के छोटे बच्चे भी जाने अनजाने देख रहे है।

वॉक कल्चर हो वह रास्ता है जिससे तस्करी और देह व्यापार का गठजोड़ बनाया और रचा जा रहा है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) का अनुमान है कि मानव तस्करी से हर साल वैश्विक स्तर पर 150 अरब डॉलर कमाए जाते हैं, जिसमें भारत का बड़ा हिस्सा है। यह स्वतंत्रता नहीं, बल्कि अवसर के नाम पर गुलामी है। जो अनगिनत युवा जो आज़ादी की और भाग रहे हे या उनके चक्कर में अन्य युवा जो इस जाल में फंस जाते हे उनके जीवन को एक दर्दनाक और बदतर जीवन की और धकेल देता है। सामान्य स्कुल और कोलेज की बच्चियाँ वासना संतोष का माध्यम बन रही हे, या वो स्त्रियाँ भी कही न कही आज़ादी के नाम पर अधिक मर्द से रिश्ता या नशे के हाल में वासना का माध्यम बन रही है। यही परिणाम है की इस कल्चर को जीवन शैली में आयोजन पूर्वक डाला जा रहा है।

इंटरनेट और सोशल मीडिया ने “हूकअप कल्चर” को बढ़ावा देने के साथ-साथ मानव तस्करी और देह व्यापार के लिए एक नया रास्ता खोल दिया है। डेटिंग ऐप्स (जैसे Tinder, Bumble) और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स (Instagram, Snapchat) पर एल्गोरिदम-आधारित टारगेटिंग और नकली प्रोफाइल्स का इस्तेमाल तस्करों द्वारा किया जाता है। वे पहले युवाओं, खासकर स्कूल-कॉलेज की लड़कियों, को नौकरी, मॉडलिंग या रिश्ते के बहाने लुभाते हैं। यह प्रक्रिया “साइबर ग्रूमिंग” कहलाती है, जिसमें तकनीक के ज़रिए भरोसा जीता जाता है। एक बार संपर्क स्थापित हो जाने पर, एन्क्रिप्टेड मैसेजिंग ऐप्स (जैसे WhatsApp, Telegram) का उपयोग कर संवेदनशील जानकारी या तस्वीरें माँगी जाती हैं, जिनका बाद में ब्लैकमेलिंग या जबरन देह व्यापार में धकेलने के लिए इस्तेमाल होता है।

तकनीक यहाँ दोहरी भूमिका निभाती है: यह “आज़ादी” के नाम पर रिश्तों और नशे को ग्लोरिफाई करने वाली सामग्री को बढ़ावा देती है, जिससे युवा जोखिम में पड़ते हैं, और साथ ही तस्करों को गुमनाम रहने और अपने नेटवर्क को व्यवस्थित करने में मदद करती है। अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (ILO) की 2024 की रिपोर्ट के अनुसार, निजी क्षेत्र में जबरन श्रम से 236 अरब डॉलर का अवैध मुनाफा होता है, जिसमें भारत जैसे देशों में डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का बड़ा योगदान है। डेटा एनालिटिक्स और AI का दुरुपयोग कर तस्कर कमज़ोर समूहों को टारगेट करते हैं, जैसे कि ग्रामीण क्षेत्रों से शहरों की ओर पलायन करने वाली युवतियाँ, जो “आज़ादी” के सपने में फँस जाती हैं।

उदाहरण: 2023 में, दिल्ली पुलिस ने एक ऑनलाइन सेक्स रैकेट का भंडाफोड़ किया, जिसमें Telegram और Instagram के ज़रिए युवतियों को “मॉडलिंग जॉब्स” का लालच देकर देह व्यापार में धकेला गया। इस तरह के मामले दिखाते हैं कि तकनीक कैसे तस्करी के लिए अवसर पैदा करती है।

सोर्स: ILO रिपोर्ट: “Profits and Poverty: The Economics of Forced Labour” (ilo.org, 18 मार्च 2024)

शर्म से बेशर्मी तक : अश्लील उद्योग का छिपा विकास

आपने इंटरनेट पर इस बदलाव को महसूस किया होगा। फिल्म डाऊनलोड वेबसाईट हो या इंस्टाग्राम जैसे सोशल मिडिया पर आपने फिल्मो के साथ ही वेब सीरिज के रूप में पोर्न आपको खुले आम देखने को मिलेगा। हमारे लिए जो सबसे चौंकाने वाला बदलाव वर्तमान समय या पिछले पांच दस साल में आया है, वह यह है की भारत का “पोर्न से शर्मिंदगी” से लेकर मनोरंजन के नाम पर “शर्म से बेशर्मी तक” इसके उद्योग में बदलाव। सिर्फ एक दशक में भारत अश्लील सामग्री के उपभोग और उत्पादन का वैश्विक केंद्र बन गया है। पोर्नहब इनसाइट्स की 2022 की रिपोर्ट में भारत को शीर्ष पाँच देशों में रखा गया, जहाँ इसके 30% से ज़्यादा यूज़र महिलाएँ हैं – जो 2015 के आंकड़ो के संदर्भ 26% से बड़ी बढ़त से आगे बढ़ा है।

आपको क्या लगता है यह बदलाव अपने आप ही आया है? जवाब है यह आपने आप नहीं आया। विदेशी प्रोडक्शन हाउस जो पहले इस व्यवसाय में हावी थे, अब भारत की अपनी “वेब सीरीज़” इंडस्ट्री के सामने छोटे पड़ते चले गए हैं, सिर्फ इस लिए क्योंकि अब वे अश्लीलता की सीमा को धुँधला कर आगे निकल चुके है। द क्विंट के 2021 के विश्लेषण में पता चला कि 2018 से 2020 के बीच रिलीज़ हुई 300 से ज़्यादा भारतीय वेब सीरीज़ में स्पष्ट अश्लील सामग्री थी, जिसे “नई सोच” के नाम पर बेचा गया। ALTBalaji और Ullu जैसे प्लेटफॉर्म ने 18-35 उम्र के दर्शकों में लोकप्रियता हासिल की। यहाँ नाम सबसे बड़े दो प्लेटफोर्म के नाम है लेकिन इनकी संख्या हजारो में बढ़ी है और बढ़ रही है। इनमे कार्य करने वाले हर एक्टर और एक्ट्रेस ने ओनलीफेन जैसे प्लेटफोर्म द्वारा इसे व्यक्तिक तौर पर बेचना प्रारंभ किया जो खुलेआम वैश्यालयो का पुरख बन कर निरंतर उभरता जा रहा है।

तथ्य और आँकड़े हमे चौंका देने वाले हैं: भारत का ऑनलाइन अश्लील मनोरंजन बाज़ार 1.2 अरब डॉलर का है और 2028 तक यह 3 अरब तक पहुँच सकता है (IMARC ग्रुप, 2023)। लेकिन इसकी कीमत अनमोल है। इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री के 2019 के अध्ययन में पाया गया कि अश्लील सामग्री का ज़्यादा इस्तेमाल युवाओं में आक्रामकता और संवेदनशीलता की कमी को लाता है, जिसमें 4 में से 1 पुरुष ने माना कि इससे उनकी महिलाओं के प्रति सोच प्रभावित हुई। यह आज़ादी नहीं, बल्कि संस्कृति का अपहरण है जो अंतरंगता को माल और सम्मान को खत्म करता है। इसमें वर्तमान मुद्दा बनने वाले ‘इंडिया गोट लेटेन्ट’ जैसे शो का इन्फ्लुएंस इसको सामान्य बनाने के लिए एक वातावरण घडते है, जो इस तरह की गतिविधि को अधिक बढ़ावा देते है। सामान्यीकरण सबसे अधिक घातक होता है जो हथियार को खिलोने के रूप में बेचने का कार्य करता है।

ALTBalaji, Ullu और OnlyFans जैसे प्लेटफॉर्म्स ने स्ट्रीमिंग टेक्नोलॉजी और सब्सक्रिप्शन-आधारित मॉडल का उपयोग कर अश्लील सामग्री को “नई सोच” और “व्यक्तिगत आज़ादी” के नाम पर सामान्यीकृत किया है। ये प्लेटफॉर्म्स AI-चालित रिकमंडेशन सिस्टम और डेटा एनालिटिक्स का इस्तेमाल करते हैं, जो 18-35 आयु वर्ग के दर्शकों की प्राथमिकताओं को ट्रैक कर उन्हें वैयक्तिकृत कंटेंट परोसते हैं। उदाहरण के लिए, यदि कोई यूज़र एक बार ऐसी सामग्री देखता है, तो एल्गोरिदम उसे बार-बार समान कंटेंट सुझाते हैं, जिससे एक “डिजिटल एडिक्शन लूप” बनता है। यह तकनीक न केवल उपभोग को बढ़ाती है, बल्कि सामाजिक स्वीकार्यता को भी मजबूत करती है।

OnlyFans जैसे प्लेटफॉर्म्स ने इसे और व्यक्तिगत बनाया, जहाँ क्रिएटर्स (अक्सर वेब सीरीज़ के अभिनेता) सीधे कंटेंट बेचते हैं। यह “क्राउडसोर्स्ड वैश्यावृत्ति” का रूप लेता है, जो ब्लॉकचेन-आधारित पेमेंट सिस्टम और एन्क्रिप्टेड कम्युनिकेशन से संचालित होता है, जिससे इसे ट्रैक करना मुश्किल हो जाता है। साथ ही, “इंडिया गॉट लेटेंट” जैसे शो, जो टैलेंट के नाम पर उत्तेजक कंटेंट को बढ़ावा देते हैं, सोशल मीडिया (Instagram, YouTube) पर वायरल मार्केटिंग और हैशटैग ट्रेंड्स के ज़रिए युवाओं के बीच इसे “कूल” बनाते हैं। यह सामान्यीकरण तकनीकी रूप से इतना प्रभावी है कि यह हथियार (अश्लीलता) को खिलौने (मनोरंजन) के रूप में पेश करता है।

IMARC ग्रुप (2023) के अनुसार, भारत का ऑनलाइन अश्लील बाज़ार 1.2 अरब डॉलर का है और 2028 तक 3 अरब तक पहुँच सकता है। यह वृद्धि OTT प्लेटफॉर्म्स की क्लाउड-आधारित स्केलेबिलिटी और मोबाइल इंटरनेट की सस्ती पहुँच से संभव हुई है। लेकिन इसका प्रभाव गहरा है। इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री (2019) के अध्ययन से पता चलता है कि अश्लीलता का अत्यधिक सेवन न्यूरोप्लास्टिसिटी को प्रभावित करता है, जिससे युवाओं में आक्रामकता बढ़ती है और महिलाओं के प्रति सम्मान कम होता है। तकनीक यहाँ एक उत्प्रेरक का काम करती है, जो सामग्री को सुलभ और स्वीकार्य बनाकर संस्कृति को कमज़ोर करती है।

उदाहरण: 2020 में, Ullu की सीरीज़ “गंदी बात” ने अपनी बोल्ड सामग्री के लिए विवाद खड़ा किया, लेकिन इसके बावजूद इसके दर्शक संख्या में भारी उछाल आया, जो एल्गोरिदम-चालित प्रचार का परिणाम था।

सोर्स: IMARC ग्रुप: “India Online Adult Entertainment Market Report” (imarcgroup.com, 2023) & इंडियन जर्नल ऑफ साइकियाट्री: “Pornography and Its Impact on Youth” (2019)

बलात्कार और लैंगिक हिंसा: गहरे पतन का लक्षण

वॉक कल्चर को गहेराई से समझा जाये तो इसके साथ कई प्रवाह जुड़ते है जिसमे ये बुराइयाँ लैंगिक हिंसा से जुड़ी हैं, क्योंकि सिर्फ “बलात्कार ही समस्या नहीं, निरंतर उभरा आकस्मिक भटकाव भी उतना ही अपमानजनक है।” NCRB के 2022 के आँकड़े डरावने हैं: 31,677 बलात्कार के मामले दर्ज हुए, यानी हर दिन औसतन 86। लेकिन यह सिर्फ हिमशिरा का सिरा है। राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे (NFHS-5, 2021) के अनुसार, 15-49 साल की 33% भारतीय महिलाओं ने शारीरिक या यौन हिंसा झेली, जो अक्सर शर्मिंदगी के कारण सामने नहीं आती।

अश्लीलता और नशे की संस्कृति इसमें सबसे अहम् भूमिका निभाती है। दिल्ली विश्वविद्यालय के 2020 के अध्ययन में पाया गया कि हिंसक अश्लील सामग्री देखने वाले 40% पुरुष कॉलेज छात्रों में महिलाओं के प्रति नफ़रत बढ़ी। नशे और शराब से भरे माहौल जैसे की नाइटक्लब, पार्टियाँ अक्सर हमले का अड्डा बनते चले गए। 2023 में दिल्ली में एक ब्रिटिश पर्यटक के साथ इंस्टाग्राम के ज़रिए लुभाकर की गई सामूहिक बलात्कार की घटना (न्यूज़18) दिखाती है कि डिजिटल “स्वतंत्रता” असल ज़िंदगी में कैसे खौफ बन सकती है।

बलात्कार से परे, रिश्तों का हल्कापन यानी की “सादी से पहले 100 जगह मुँह मारना” प्रचलित वाक्य जो सोशियल मिडिया पर सुनना जाता है वह मानवीय संबंधों के सम्मान का नुकसान दिखाता है। यह प्रगति नहीं, बल्कि वस्तुकरण की ओर वापसी है, जहाँ लोग क्षणिक सुख तक सिमट जाते हैं। वास्तविक सुख के चक्कर में वह अपना अस्तित्व ही भुलाकर विनाश के लूप में फंस जाते है, क्योंकि अक्सर आप उस तरह के लूप में फंस जाते है जहां से निकलना नामुनकिन सा हो जाता है। एक भी गलती अत्यधिक गंभीर बन जाती है। आपने अजमेर की बलात्कार वाली सामूहिक घटना को अवश्य सूना होगा?

तकनीक ने अश्लीलता और नशे की संस्कृति को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, खासकर इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिए। दिल्ली विश्वविद्यालय के 2020 के अध्ययन के अनुसार, हिंसक अश्लील सामग्री का सेवन करने वाले 40% पुरुष कॉलेज छात्रों में महिलाओं के प्रति नफरत में वृद्धि देखी गई। यह प्रभाव न्यूरोप्लास्टिसिटी से जुड़ा है, जहाँ बार-बार हिंसक कंटेंट देखने से मस्तिष्क में व्यवहारिक पैटर्न बदलते हैं। पोर्नोग्राफी प्लेटफॉर्म्स, जैसे Pornhub, AI-आधारित रिकमंडेशन सिस्टम का उपयोग करते हैं जो यूज़र्स को उनकी पसंद के आधार पर और अधिक उत्तेजक सामग्री की ओर धकेलते हैं, जिससे यह एक व्यसनकारी लूप बन जाता है।

साथ ही, सोशल मीडिया (जैसे Instagram) ने नशे और “हूकअप कल्चर” को ग्लोरिफाई करने के लिए एक मंच प्रदान किया है। 2023 में दिल्ली में एक ब्रिटिश पर्यटक के साथ हुई सामूहिक बलात्कार की घटना इसका उदाहरण है, जहाँ इंस्टाग्राम के ज़रिए उसे लुभाया गया। यहाँ तकनीक ने अपराधियों को टारगेट ढूंढने और संपर्क करने का आसान तरीका दिया। डिजिटल “स्वतंत्रता” ने गुमनामी और एन्क्रिप्टेड चैट्स (जैसे Telegram) के ज़रिए ऐसी गतिविधियों को छिपाने की सुविधा दी, जिससे यह वास्तविक जीवन में खौफ का कारण बन गई। अजमेर 1992 की सामूहिक बलात्कार घटना में भी तकनीक का दुरुपयोग दिखा, जहाँ फोटोग्राफी (उस समय की तकनीक) का इस्तेमाल ब्लैकमेलिंग के लिए किया गया। आज डिजिटल कैमरे और सोशल मीडिया ने इस पैटर्न को और आसान बना दिया है।

यह रिश्तों के हल्केपन को भी बढ़ावा देता है। सोशल मीडिया पर “सादी से पहले 100 जगह मुँह मारना” जैसे वाक्य वायरल होकर मानवीय संबंधों को वस्तु में बदलते हैं। यह एक डिजिटल लूप बनाता है, जहाँ लोग क्षणिक सुख के लिए एल्गोरिदम-चालित कंटेंट में फंसते हैं, और एक गलती (जैसे नशे में अपराध) उनके जीवन को विनाश की ओर ले जाती है। तकनीक यहाँ सम्मान को खत्म कर वस्तुकरण को बढ़ाती है। महिला की एक गलत चाल उसके जीवन का पूरा प्रवाह बदल जाता है, फिर ब्लेक्मिलिंग और शारीरक सबंध जैसे विकृत मांग से बड़ी घटनाओ के मार्ग भी खुलते है।

सोर्स: दिल्ली विश्वविद्यालय अध्ययन: “Impact of Violent Pornography on Male College Students” (2020, संदर्भित) | न्यूज़18: “British Tourist Gang-Raped in Delhi via Instagram Lure” (2023) | अजमेर घटना: “Ajmer 92 Rape Case” (Wikipedia, 2024)

सांस्कृतिक और राष्ट्रीय पतन

वॉक कल्चर के बढ़ते चलन को गहेराई से समझा जाये तो दाँव पर सिर्फ व्यक्तिगत बर्बादी नहीं है। क्योंकि इस तरह का प्रवाह या ये ताकतें “सिर्फ संस्कृति पर हमला नहीं करतीं, बल्कि देश और संस्कृति को बर्बाद कर सकती हैं।” इतिहास इसका सबूत है: रोम जैसी सभ्यताएँ बाहरी आक्रमण से नहीं, बल्कि आंतरिक नैतिक, सामाजिक और आर्थिक पतन से ढह गईं। भारत भी वर्तमान समय में ऐसा ही जोखिम उठा रहा है, अगर चेतावनी और चुनोतियों को नज़रअंदाज़ किया गया तो इसके परिणाम निसंदेह गंभीर और घातक होंगे।

अधिक गहेराई से न सोचा जाये तब भी वोक कल्चर से आर्थिक नुकसान तो साफ़ दिखता है। नशे की लत और तस्करी उत्पादक क्षेत्रों से अरबों रुपये छीन लेते हैं, वहीं अश्लील उद्योग प्रतिभा और संसाधनों को शोषण में झोंक देता है। सामाजिक रूप से, परिवार की संरचना और व्यवस्था जो भारत की रीढ़ के समान मानी जाती है वह खतरे में है। प्यू रिसर्च के 2022 के अध्ययन में पाया गया कि 60% भारतीय युवा व्यक्तिगत स्वतंत्रता को पारिवारिक कर्तव्य से ऊपर रखते हैं, जो परंपरा से बड़ा बदलाव है। यह आधुनिक पतन का स्पष्ट संकेत है, जिस संस्कृति, परंपरा और धर्म के आधार पर हम विश्वगुरु के पद की और देखते है वह निरंतर गिरती जा रही है।

आर्थिक द्रष्टि से थोड़ा अलग सोचा जाये तो इससे होने वाले नुकशान में सांस्कृतिक नुकसान अत्यधिक गहरा है। भारत की विरासत जोधर्म (कर्तव्य) और संस्कृति पर आधारित रही है अब वह पश्चिमी अतिवाद की खोखली नकल से उत्कर्ष के बजाये विध्वंश में बदल रही है। जो हम इस वक्त देख रहे है यह वैश्वीकरण नहीं, बल्कि चुपके से किया गया उपनिवेश है, जहाँ बाज़ार पहचान तय करता है। भारत सब से बड़ा बाजार है, किसी भी प्रोडक्ट को सफल बनाने का और उसमे बड़ी बाधा है संस्कृति, परंपरा और जीवन शैली। यही परिणाम है इसीको ख़त्म भी किया जा रहा है, और हमें बहेलाया जा रहा है की हम विकसित और पढेलिखे लोग बन रहे है।

तकनीक ने नशे, अश्लीलता और “वोक कल्चर” को बढ़ावा देकर भारत के आर्थिक और सांस्कृतिक ढांचे को कमज़ोर किया है। नशे की लत और तस्करी को डिजिटल प्लेटफॉर्म्स (जैसे डार्क वेब और क्रिप्टोकरेंसी-आधारित लेनदेन) ने आसान बनाया है। उदाहरण के लिए, बिटकॉइन और एन्क्रिप्टेड मार्केटप्लेस (जैसे Silk Road के उत्तराधिकारी) का उपयोग कर नशीले पदार्थों की तस्करी होती है, जो उत्पादक क्षेत्रों से अरबों रुपये छीन लेती है। भारत में नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (NCB) की 2023 की रिपोर्ट के अनुसार, डिजिटल तस्करी से सालाना 10,000 करोड़ रुपये का नुकसान हो रहा है। इसी तरह, अश्लील उद्योग OTT प्लेटफॉर्म्स और OnlyFans जैसे मॉडल के ज़रिए प्रतिभा और संसाधनों को शोषण में झोंक रहा है, जहाँ AI-चालित कंटेंट और टारगेटेड विज्ञापन इसे बढ़ावा देते हैं।

सांस्कृतिक रूप से, सोशल मीडिया और स्ट्रीमिंग प्लेटफॉर्म्स ने “व्यक्तिगत स्वतंत्रता” को ग्लोरिफाई करने वाली पश्चिमी विचारधारा को फैलाया है। प्यू रिसर्च (2022) के अनुसार, 60% भारतीय युवा पारिवारिक कर्तव्य से ऊपर व्यक्तिगत आज़ादी को तरजीह देते हैं। यह बदलाव एल्गोरिदम-चालित कंटेंट (TikTok, Instagram Reels) से प्रेरित है, जो पश्चिमी “वोक” जीवनशैली को आकर्षक बनाकर परंपरा को कमज़ोर करता है। तकनीक यहाँ एक बाज़ार-निर्देशित हथियार की तरह काम करती है, जो भारत की सांस्कृतिक पहचान (धर्म और कर्तव्य) को नष्ट कर उसे खोखले उपभोक्तावाद में ढाल रही है।

आर्थिक दृष्टि से, यह वैश्वीकरण नहीं, बल्कि “डिजिटल उपनिवेश” है। भारत, दुनिया का सबसे बड़ा बाज़ार होने के नाते, वैश्विक टेक कंपनियों (जैसे Meta, Google) के लिए लक्ष्य है। ये कंपनियाँ डेटा एनालिटिक्स और बिहेवियरल टारगेटिंग का उपयोग कर भारतीय युवाओं को ऐसी जीवनशैली की ओर धकेलती हैं जो उनकी संस्कृति को खत्म करती है। उदाहरण के लिए, नेटफ्लिक्स और अमेज़न प्राइम जैसे प्लेटफॉर्म्स भारतीय दर्शकों के लिए कंटेंट को “वोक” बनाते हैं, जिससे पारंपरिक मूल्य हाशिए पर चले जाते हैं। यह सांस्कृतिक नुकसान उत्पादकता, सामाजिक एकता और दीर्घकालिक विकास को प्रभावित करता है, जो किसी भी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होते हैं।

उदाहरण: 2023 में, NCB ने एक डार्क वेब ड्रग रैकेट का भंडाफोड़ किया, जहाँ Telegram और क्रिप्टोकरेंसी के ज़रिए 500 किलो नशीले पदार्थ बेचे गए। यह दिखाता है कि तकनीक कैसे आर्थिक नुकसान का ज़रिया बन रही है।

सोर्स: प्यू रिसर्च: “Indian Youth Prioritize Personal Freedom Over Family Duty” (pewresearch.org, 2022) | NCB रिपोर्ट: “Digital Drug Trafficking in India” (narcoticsindia.nic.in, 2023)

समाधान: कार्रवाई का आह्वान

वर्तमान समय में भारत के युवा की इस दिशा में स्थिति गंभीर है, लेकिन पूरी तरह से निराशाजनक नहीं। इस लहर को रोकने के लिए सामूहिक प्रयास किया जाना चाहिए:

  1. नियम और जागरूकता: सरकार को नशे की तस्करी और ऑनलाइन सामग्री पर सख्त कानून बनाने होंगे। 2022 में 67 अश्लील साइट्स पर प्रतिबंध (MEITY) एक शुरुआत थी, लेकिन लागू करना कमज़ोर रहा। “बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ” जैसे अभियानों को डिजिटल खतरों पर युवाओं को जागरूक करने के लिए बढ़ाना चाहिए। सिर्फ कुछ प्लेटफोर्म पर प्रतिबंध कुछ ही दिनों में नए नाम से अलग रूप में आने की संभावना को रोक नहीं पाता। इसे पूर्ण रूप से मूल सहित ख़त्म करना होगा।
  2. समुदाय का संगठन: एनजीओ, शिक्षक और धार्मिक नेता “वॉक कल्चर” के खिलाफ उद्देश्य और संयम के मूल्यों को बढ़ावा दें। आर्ट ऑफ लिविंग जैसे युवा सशक्तिकरण कार्यक्रम ऊर्जा को सही दिशा देने में सफल रहे हैं। भारत को फिर से पाने सांस्कृतिक विरासत की और ले जाना सबसे प्रभावी और आकर्षक मार्ग बन सकता है। शास्त्रों का ज्ञान और समज उन्हें आज़ादी और ज्ञान के वास्तविक परिप्रेक्ष्य के समक्ष ले जायेगा।
  3. युवा सशक्तिकरण: बेकारी को रचनात्मकता में बदलने के लिए कौशल, खेल और कला के अवसर प्रदान करने चाहिए। युवा क्रियेटर एवोर्ड में सोशियल मिडिया की रचनात्मकता से अधिक वास्तविकता को देखा जाना चाहिए, क्योंकि व्यूज़ तो वोक कंटेंट पर भी अधिक आ जाते है। हमे सफलता के पैमाने बदलने होंगे। राष्ट्रीय कौशल विकास निगम ने 2022 तक 1 करोड़ युवाओं को प्रशिक्षित किया; ऐसे प्रयासों को संस्कृति रंगों में बदलना और बढ़ाना होगा।
  4. माता-पिता और संस्थानों की भूमिका: स्कूल और परिवार सहपाठियों के दबाव के खिलाफ सोचने, समझने और सवाभिमान की क्षमता और मज़बूती दें। CBSE के 2023 के जीवन कौशल शिक्षा पायलट ने भाग लेने वाले स्कूलों में नशे को 15% कम किया। माता-पिता को कठोर निर्णय लेकर भी अपनी संतानों को इस और बढ़ने से रोकना होगा और सांस्कृतिक विरासतों के प्रति उन्हें जागृत करना होगा। संस्कार ही अपराध को रोक सकते है, सरकार नहीं।
  5. वैश्विक सहयोग: भारत को UNODC जैसे अंतरराष्ट्रीय संगठनों के साथ तस्करी और नशे के नेटवर्क तोड़ने के लिए तकनीक का इस्तेमाल करना चाहिए। सरकारी न्याय और संरक्षक व्यवस्था में छिपे लूप होल को खोजना और हमेशा के लिए बंध करने का मार्ग बनाना होगा।

वास्तविक स्वतंत्रता की पुनर्प्राप्ति

स्वतंत्रता किसी भी संदर्भ में सीमाओं का अभाव नहीं, बल्कि उपस्थित उद्देश्य की मौजूदगी का नाम है। भारत के युवा, जो इसके भविष्य की धड़कन हैं, नशे, शोषण और खोखले सुखों से बेहतर जीवन पाने के हकदार हैं। “वॉक कल्चर” कुछ समय के लिए चमक सकता है, लेकिन यह लंबे अंतराल के बाद के परिप्रेक्ष्य में बर्बादी की ओर ले जाने वाला भ्रम है। समाज के रूप में हमें पूछना होगा की: हम पीछे क्या छोड़ते हैं?

यह सिर्फ आलोचना नहीं, बल्कि जागृति का नारा है। आइए, हम परिस्थितियों के शिकार नहीं, बल्कि नए भारत के निर्माता बनें – जहाँ स्वतंत्रता का मतलब सम्मान हो, विनाश नहीं।


Written by:- Sultan Singh

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English Translation of Article – Click Here

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One response to “स्वतंत्रता का क्षरण: “वॉक कल्चर” और आधुनिक बुराइयाँ कैसे भारत के युवाओं और समाज को खतरे में डाल रही हैं”

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