EP 06 – The Untold Story of Max Muller & the Distortion of Vedic Texts | Hindi


नमस्ते, आप सभी यह सुन रहे हे, मतलब आपकी रूचि यह जानने में है की, यह विकृति करण हुआ कैसे?

मैं हूँ आपका होस्ट कालस्य टीम की और से, और इस विषय पर में आप सभी का स्वागत करता हूं।

आज की इस वीडियो में जहां हम हिंदू धर्म की गहराइ में उतरते हैं और अपनी पवित्र परंपराओं की जटिलताओं को समझने का प्रयास करते हैं। आज हम एक ऐसे विषय पर चर्चा करेंगे, जो मेरे दिल के बेहद करीब है: वैदिक ज्ञान को विकृत करने की अंग्रेजो द्वारा हुइ आयोजन पूर्वक साजिश।

आज की वीडियो में हम मैक्स मुलर के अनुवादों और उन गहरे षड्यंत्रों को उजागर करेंगे, जिन्होंने हमारे पवित्र ग्रंथों में वह हेरफेर की जिसने हिन्दू ग्रंथो को उस स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया जहां खुद भारत मूल के लोगो ने ही उन्हें शंकास्पद द्रष्टि से देखना आरम्भ कर दिया। तो आइए, इस खोज यात्रा पर निकलते हैं, और उस सच्चाई को उजागर करते हैं, जो दशको से छिपी हुई है या जान बुझ कर हमशे छुपाई गई है।”

आज़ादी के बाद और पहले अगर किसी ने अंग्रेजी भाषा में वेदों और शास्त्रों को पढ़ा होगा तो आपने मेक्स मुलर का नाम सूना होगा। क्योंकि, उस वक्त शास्त्रों से जुडी अधिकतर किताबे या तो सिर्फ संस्कृत में थी या अंग्रेजी में जो मेक्स मुलर द्वारा अनुवादित की गई थी।

मैक्स मुलर, एक जर्मन विद्वान माना जाता है, जिस को ईस्ट इंडिया कंपनी द्वारा भारत में कार्य करने हेतु लाया गया था। उसको यहाँ ब्रिटिश हुकुमत ने हमारे सबसे पवित्र ग्रंथों, वेदों और शास्त्रों का अनुवाद करने का काम सौंपा।

आपको लग रहा होगा, निश्चित तौर पर वह व्यक्ति ज्ञानी रहा होगा, लेकिन वह आयोजन पूर्वक भारत की आत्मा पर हुआ वह घांव था जिसकी कीमत हम आज भी चूका रहे है।

आप को यह बात जानकर आवश्य ही हैरानी होगी की जिसे भारतीय पवित्र शास्त्रों की अनुवादन व्यवस्था सोपी गई, उन्हें न तो ठीकठाक संस्कृत का ज्ञान था और न ही अंग्रेज़ी का कोई ज्ञान था। यह ऐसा है जैसे उस व्यक्ति से सूर्य के प्रकाश की सुंदरता का वर्णन करने को कहा जाए जिसने जन्म से लेकर आज तक न सूरज देखा है न दुनिया को ठीक से देख पाया हें। इसके परिणाम और प्रभाव कितने विनाशकारी हो शकते थे यह आप भी समझते है और अंग्रेज भी ठीक से जानते समझते थे, लेकिन वह यही चाहते थे। वह क्या चाहते थे, और वह क्या कर पाए यह हम आज तक महसूस कर पा रहे हे। एक पूरी अंग्रेजो से प्रभावित पीढ़ी ने भारतीय शास्त्रों का अध्ययन और चिंतन उसी द्रष्टि से किया जिस द्रष्टि से अंग्रेजो ने उसका अनुवाद करवाया था। शास्त्रों का मूर्खतापूर्ण विवेचन और उसके प्रभाव आज भी हमारे समक्ष आए दिन उपस्थित होते रहेते है। जिसमे कुछ मूर्खो द्वारा पुस्तके जलाना और भद्दी टिप्पणिया सामिल है।

भारतीय पहेले से अंग्रेजो से अधिक प्रभावित रहे है, खास कर वह जिनके मन में ब्राह्मणों के लिए नफरत को आयोजन पूर्वक रोपा गया था। क्यों रोपा गया था यह अलग विषय है जिसकी चर्चा हम अवश्य करेंगे लेकिन किस तरह से भारतीय ज्ञान को चुराकर अपने देश की उन्नति के लिए इस्तेमाल किया जाना और भारतीय शिक्षा व्यवस्था खास कर गुरुकुल को तबाह कर के हमे अंग्रेजी शिक्षा व्यवस्था थमा देना सामिल है। परिणाम यह है की आज की पीढ़ी आधुनिक शिक्षा के बाद भी वह सब नहीं पा सकती जो अंग्रेजो ने बिना पढ़े या कम पढ़े हासिल किया। वह किस तरह से हुआ इसका प्रमाण उनके खुद के अनुभवों में आने वाले हिन्दू शास्त्रों के प्रमाण से मिल जाता है।

अपने विषय पर वापस लौटते है, मेक्स मुलर अंग्रेजो द्वारा भारतीय ज्ञान प्रणाली पर लगाई गई वह किल थी जिसने हिन्दू धर्म की नींव को कमजोर करने की प्रणाली को प्रारंभ किया। लेकिन ब्राहमणों का ज्ञान और गुरुकुल उनके लिए सबसे बड़ी चुनोती थे। यही वजह थी एक और अंग्रेज मेकोले को भारत में लाया गया जिसने भारतीयों को जन्म से भारतीय रहेने दिया लेकिन शिक्षा और मानसिक स्तर पर अंग्रेज बनाने के हर संभव प्रयास किये। उसमे वह कितने सफल रहे यह हम आज तक समाज में देख रहे है। अन्यथा जब विदेशी लोगो के पास खाने को अन्न पकाने तक की अक्ल नही थी तब भारत का इतिहास वेदों जैसे अनन्य ग्रंथो को वहन कर रहा था। नालंदा और तक्षशिला जैसी वैश्विक शिक्षा प्रणाली हमारे पास थी।

खेर, मेक्स मुलर का भारत में लाया जाना इतना सफल रहा की आज तक कुछ लोगो की शास्त्रों के प्रति नफरत सामने दिखाई पड़ती है। यह जानते हुए की उन्होंने शास्त्र जहां से पढ़े हे वह सोर्स ही गलत था, कुछ पीढ़िया तो उसी सोर्स को सत्य मान कर उसपे विवेचन करते हुए चल बसी। यह विवेचना जो की गलत थी खास कर उन्ही लोगो द्वारा हुइ जो अंग्रेजो की चाल के अनुसार जन्म से तो भारतीय थे लेकिन मन से अंग्रेज, जिनहे संस्कृत नहीं आती थी लेकिन अंग्रेजी अच्छे से शिख चुके थे। जब की शास्त्र बिना संस्कृत समझना ही मुश्किल है, उसमे भी शास्त्रों का काल आदि संस्कृत में वर्णित माना जाता है यानी की प्राचीन संस्कृत का स्वरूप कुछ अधिक जटिल रहा है।

लेकिन, मेक्स मुलर जैसे लोग सफल रहे। उनकी मुर्खता पूर्ण अनुवादन प्रणाली ने जानबूझ कर की गई गलतियों और गलत व्याख्याओ को ब्रिटिश हुकुमत से सत्यापन की महोर मिल गई। अंतः वह यही तो चाहते थे, क्योंकि अपने अस्तित्व के प्रति जब तक किसी को शर्मिंदगी महेसुस नहीं कराइ जाती वह किसी और अस्तित्व की और क्यों बढेगा? जब गुरुकुल में हर ज्ञान का उच्च स्तर हासिल हो रहा था तो वे अंग्रेजी ज्ञान की और क्यों बढ़ते? इसी लिए उन्हों ने उस ज्ञान के स्त्रोत में ही घालमेल की साजिश रची जिसको अंजाम दिया मेक्स मुलर जैसे अनुवादन कर्ता ने जो संस्कृत या शास्त्रों के जानकार ही नहीं थे। लेकिन उनका उद्देश्य वास्तविक अनुवादन था ही नहीं, उनका उद्देश्य हिंदू धर्म की आध्यात्मिक नींव को कमजोर करना था।

थोडा आगे चलते है,

1757 में भारत पर ब्रिटिश उपनिवेशवाद की शुरुआत ने शोषण और सांस्कृतिक साम्राज्यवाद के एक नए युग की शुरुआत कर दी। ब्रिटिशों ने महसूस किया कि हिंदू जनता को अधीन करने के लिए, उन्हें उस वैदिक ढांचे से दूर करना होगा जिसके द्वारा उनका संचालन हो रहा है, जो सभी हिंदू प्रणालियों की नींव थी। यह नींव थी हमारी ज्ञान व्यवस्था, शास्त्र और संस्कृति। लेकिन, इसका उन्मूलन ब्राहमणों के होते हुए अत्यधिक मुश्किल था। क्योंकि धार्मिक, सांस्कृतिक और व्यावहारिक ज्ञान के साथ समाज का व्यवस्थापन से लेकर राजकीय मीमांसा शास्त्रोक्त तरीके से संचालित थी। इसे तोड़ने के लिए उस अस्तित्व को तोडना आवश्यक था, जिसको ज्ञान का केंद्र बिंदु या ब्राहमण के रूप में शास्त्रों का वहन होना माना जाता हे, जो थी गुरुकुल परंपरा। एक लाख से अधिक गुरुकुल होने का लिखित अंदाज मिलता है, उसी समय काल के आसपास। लेकिन आज वह गुरुकुल कहा है?

इसी व्यवस्था को तोड़ने के परिणाम स्वरूप हमारे पवित्र ग्रंथों को विकृत और उसके ढांचे में हेरफेर करने का एक व्यवस्थित प्रयास शुरू हुआ, जिससे एक ऐसी विचारधारा बनाया जा सके जो उनके उपनिवेशवादी उद्देश्यों को न्यायोचित ठहरा सके। मैक्स मुलर के अनुवाद इस रणनीति का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बने, और उनके काम को पुर्तगाली और इतालवी मिशनरियों से भी प्रभावित किया गया था, जो सदियों पहले भारत आए थे। भारत को जाती (जो के कभी भारतीय व्यवस्था रही नहीं) शब्द का उल्लेख शास्त्रों के अनुवाद में मिला दिया गया। आप इंटरनेट पर खोज लीजिये शास्त्रों का उद्भव कास्ट शब्द के पर्तुगिज शब्द में उद्भव से पहेले का है, तो फिर वह शास्त्रों में कैसे आया? इसे लाया गया, जाती के आधार पर शास्त्रों ने बाँट दिया यह आजकल कहेना फेशन बन चूका है, लेकिन एक भी शास्त्र में हमे जातियों का वर्णन नहीं मिलता।

जातियों का वर्णन अगर इंटरनेट पर ढूंढे तो मिलेगा की “भारत में दर्ज जातियों को ब्रिटिश औपनिवेशिक सरकार ने 1901 की जनगणना के दौरान दर्ज किया था। यह जनगणना भारत के तत्कालीन जनगणना आयुक्त हर्बर्ट होप रिस्ले की देखरेख में की गई थी। रिस्ले की जनगणना रिपोर्ट में भारत में कुल 2,378 जातियाँ और उपजातियाँ सूचीबद्ध थीं। हालाँकि, यह ध्यान देने योग्य है कि इस संख्या पर विवाद हुआ है और इसकी कार्यप्रणाली संबंधी सीमाओं और पूर्वाग्रहों के लिए आलोचना की गई है।” लेकिन चूँकि भारत को बाँटना था, पुरे विश्व ने जिस सेन्सस को नकार दिया यह कहकर की यह वाहियात है, भारत में इसको लागू किया गया। अगर यह सच में होता तो वेद, पुराण या जिस पर सबसे अधिक विवाद रहेता हे, उस मनुस्मृति में ही आप कही से भी २३७८ जाती का नाम दिखा दीजिये? और कमाल की बात सुनिए, आज यह आंकड़ा ३००० जातियां और २५००० उप जातियों तक पहुँच गया है। क्या यह अनुसूची आपको सनातन से सबंधित वैदिक किसी भी ग्रंथ में मिलती है?

आगे आप खुद सर्च कर लीजिये, कुछ मेने ए आइ से पूछा हे आप देख लीजिये।

अब सवाल यह है की, मैक्स मुलर ने हमारे पवित्र ग्रंथों में इस तरह की स्पष्ट विकृति क्यों की?

वैसे तो उपर की चर्चा से आप समझ चुके है, लेकिन फिर भी हम रिकोर्ड के हिसाब से चलते है।

तो, इसका उत्तर उनके अपने शब्दों में मिलता है। उनका मानना था कि हिंदू धर्म की आध्यात्मिक नींव को कमजोर करके, वे हिंदुओं का ईसाई धर्म में रूपांतरण आसान बना सकते हैं। यह एक चौंकाने वाली स्वीकारोक्ति है, लेकिन उनके काम के पीछे की वास्तविक मंशा को भी स्पष्ट तौर पर उजागर करती है। वे हिंदू धर्म को ईसाई प्रभुत्व के लिए एक खतरे के रूप में देखते थे, और इसे नष्ट करने के लिए पूर्ण रुप से प्रतिबद्ध थे।

और जो बात और भी अधिक चौंकाने वाली है, वह यह है कि उनके काम को ब्रिटिश उपनिवेशवादियों का समर्थन था और यह सब कार्य करने के लिए उन्हें ब्रिटिश सत्ता से वित्तीय सहायता भी प्राप्त थी, जिन्होंने इसे शोषण और हेरफेर की संभावनाओं के रूप में देखा।

आज भी अगर समाज में कुछ हिस्सों में देखा जाए तो हमारे यहाँ भारतीयों को जन्म से भारतीय रखने और मानसिक तौर पर अंग्रेजो जैसा बनाये रखने में उनकी महेनत रंग लाइ है। आज भी हमारे यहाँ संस्कृत, हिंदी या स्थानिक मातृभाषा बोलने वाले से अधिक सन्मान आजादी के ७५ से अधिक साल बाद भी अंग्रेजी बोलने वाले को ही मिलता है। इस हिसाब से अंग्रेजी की मंसा और मैक्स मुलर के काम का प्रभाव उनके लिए सकारात्मक और भारतीयता के लिए विनाशकारी रहा है। उनके अनुवादों का उपयोग एक ऐसी विचारधारा को बनाने के लिए किया गया, जिसने हिंदू धर्म की आध्यात्मिक नींव को ही कमजोर किया, हिंदुओं के शोषण और उत्पीड़न को उचित ठहराया गया, उन्हें बाँटने का काम हुआ और इस मिथक को बनाए रखा कि हिंदू धर्म अन्य धर्मों से हीन है।

ताज्जुब की बात यह है की हमने इस थियरी को मान लिया, उसी तरह जैसे डार्विन की उत्क्रांति और आर्य इनवेजन की थियरी को माना। जबकि थियरी और सिध्धांत में जमीन आसमान का फर्क होता है, थियरी एक कल्पना मात्र है कोई साबित किया गया सिध्धांत नहीं। लेकिन अंग्रेजो ने कहा तो सत्य ही होगा, इस मानसिकता ने हमें आत्मग्लानी से उस हद तक भर दिया के उनके काया कलापों ने हमें हद से अधिक प्रभावित किया, जिसका दुष्कर प्रभाव आज भी दिखाई पड़ता है

आज भी हमारे यहाँ आत्मग्लानी से भरे लोगो का एक बड़ा समूह दिखाई पड़ता है। लेकिन हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि अंग्रेजो द्वारा फैलाया गया हमारा ग्लानिभाव एक विशुध्द झूठ है, एक धोखाधड़ी भरा विचारधारा जो उपनिवेशवादियों द्वारा उनके अपने हितों के लिए बनाया गया था। इसी आत्मग्लानी की भावना ने भारत के अनगिनत लोगो को मिशनरियों द्वारा कन्वर्जन के घेरे में डालकर धर्म परिवर्तन जैसे कार्यो को साध लिया। आज तक इस आत्मग्लानी को हमारे ऊपर किसी न किसी तरह से थोपा जा रहा है, लेकिन अब आज़ादी के ७५ से अधिक साल बाद भी हमें इसमें रहेना मूर्खतापूर्ण लगता हे। हमें गुलामी की मानसिकता के सूचक समान इस विचारधारा से ऊपर उठना होगा, हमें अपनी विरासत को पुनः प्राप्त करना होगा, और हमें हिंदुओं जी के मूल भारतीय है के रूप में अपनी पहचान को प्रबल करना होगा।

तो, हम इस विचारधारा का मुकाबला करने के लिए क्या कर सकते हैं? हम अपनी विरासत को कैसे पुनः प्राप्त कर सकते हैं? और हिंदुओं के रूप में अपनी पहचान को कैसे प्रबल कर सकते हैं? इसका उत्तर भी शिक्षा, ज्ञान और हमारे पवित्र ग्रंथों की गहरी समझ में निहित है। हमें वेदों, उपनिषदों और पुराणों का अध्ययन करना चाहिए और उन्हें उनके मूल संदर्भ में समझना चाहिए। हमें उन संगठनों और व्यक्तियों का समर्थन करना चाहिए, जो हिंदू धर्म को बढ़ावा देने और हमारे विश्वास के खिलाफ किए गए विकृतियों और गलत व्याख्याओं का विरोध करने का काम कर रहे हैं।

अंत में, वैदिक ज्ञान को विकृत करने की साजिश हिंदू धर्म के लिए एक वास्तविक और वर्तमान खतरा है। हमें उन शक्तियों के बारे में जागरूक होना चाहिए, जो बार बार हर बार हमारे विश्वास को कमजोर करने का प्रयास करती हैं, और हमें उन्हें रोकने के लिए कदम उठाने चाहिए। हमें अपनी विरासत को पुनः प्राप्त करना होगा, अपनी पहचान को प्रबल करना होगा, और अपने पवित्र ग्रंथों की गहरी समझ को बढ़ावा देना होगा। आइए हम एक उज्वल भविष्य के लिए मिलकर काम करें, एक ऐसा भविष्य जो ज्ञान, बुद्धिमत्ता और हमारी परंपराओं की गहरी समझ में निहित हो।

जय श्री राम, जय श्री कृष्ण, जय महाकाल

और अंत में, इस खोज यात्रा में मेरे साथ जुड़ने के लिए धन्यवाद।

[ आवश्यक सुचना:- सिर्फ इस वीडियो को सुनकर इसे सत्य मान ले यह हम नहीं कहेते, आप खुद खोजे, खुद समझे, एक बात तो साफ हे की आपको जो दिखाया जा रहा है वह हर बार सच हो यह तो संभव नहीं हे ना? आप जिसको फोलो करते हे उनके ज्ञान का स्त्रोत भी आवश्यक मुद्दा है। क्योंकि हर व्यक्ति के ज्ञान की एक मर्यादा होती है। देश का पीएचडी होल्डर सर्वज्ञता नहीं होता, हर व्यक्ति की अपनी अपनी ज्ञान की एक विशेषता होती है। अगर कोई मेनेजमेंट पर पीएचडी करता है तो, वह सिर्फ उस विषय का डोक्टर कहेलाता है। अगर वह ज्ञान चंद्रयान पर देने लगे तो हर बार उसका सत्य होना आवश्यक नहीं है, जब तक की उसे जांचा परखा न जाए। अन्यथा वही होता है जो भारतीय शास्त्रों के साथ एक संस्कृत न जानने वाले व्यक्ति ने दशको पहेले किया था। अस्तु ]


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